तेनाली राम || Tenali Ram : Stories of Tenali Raman

 तेनालीराम एक विदूषक कवि थे| तेनालीराम सोलवी शताब्दी में विजयनगर राज्य के राजा कृष्णदेव राय के दरबार में दरबारी थे| वह अपनी वाक- पटुता और बुद्धिमता के लिए जाने जाते थे| उनकी हाजिर जवाबी का कोई जवाब नहीं दे पाता था|राजा कृष्णदेव राय तेनालीराम पर बहुत विश्वास करते थे| तेनालीराम राजा कृष्णदेव राय के बहुत खास मंत्रियों में से एक थे|



तेनाली राम || Tenali Ram : Stories of Tenali Raman 





तेनालीराम कौन थे? Who was Tenali Ram?

 तेनालीराम कालीपारु नाम के एक छोटे से गांव में पैदा हुए थे| जब वह बहुत छोटे थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया था| उनकी माताजी ने बड़े ही मुश्किल से उनका और तेनाली राम का पालन पोषण किया था| तेनालीराम जब छोटे थे तो उन्हें पढ़ाई से ज्यादा दूसरों को परेशान करने में मजा आता था| इसीलिए उन्होंने शिक्षा प्राप्त करने में कोई रुचि नहीं दिखाई, लेकिन फिर भी वह महत्वकांक्षी थे|

 तेनालीराम जानते थे कि राजा कृष्णदेव राय बहुत ही गर्म मिजाज के थे|राजा कृष्णदेव राय अगर किसी से नाराज होते थे तो उन्हें सजा भी दे देते थे| लेकिन तेनालीराम ने यह भी सुना हुआ था कि राजा कृष्णदेव राय बुद्धिमान का बहुत ही सत्कार करते थे| इसीलिए तेनालीराम राजा कृष्णदेव राय के दरबार में मंत्री पद पर नियुक्ति चाहते थे| 


जब तेनालीराम के दोस्तों ने उनके इस विचार को सुना तो वह लोग उनके( तेनालीराम) ऊपर हंसने लग गए " क्या तुम पागल हो गए हो, जो राजा कृष्णदेव राय के दरबार में जाना चाहते हो? तुम वहां जाकर क्या कर सकते हो? तुम्हें वहां के दरबारी बाहर से ही फेंक देंगे|"


 लेकिन तेनालीराम ने अपना विचार नहीं बदला और वह किसी भी तरह से राजा कृष्णदेव राय के दरबार में जाना चाहते थे| और एक दिन उन्हें इसका अवसर भी मिला| एक राजगुरु जो कृष्ण राजा कृष्णदेव राय के गुरु भी थे, वह तेनालीराम के गांव में मंगलागिरी के तट पर पूजा करने पहुंचे|


जैसे ही तेनालीराम को पता चला कि यह राजा के दरबार के मुख्य अधिकारी है तो तेनालीराम ने उनका पीछा करना शुरू कर दिया| जब राजगुरु को पता चला तो उन्होंने तेनालीराम से पूछा, "तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे हो?" "क्या बात है|"


 तब तेनालीराम ने विनम्रता पूर्वक कहा, "यह मेरा सौभाग्य है कि मैं आप जैसे महान व्यक्ति को अपनी आंखों से देख पा रहा हूँ|और मैं आपकी सेवा करना चाहता हूँ | राजगुरु ने एक तोलिया देकर तेनालीराम से कहा, "तुम यह पकड़ कर ला सकते हो|" 


 थोड़ी देर बाद तेनालीराम ने हाथ जोड़कर विनम्रता पूर्वक राजगुरु से पूछा, "क्या आप महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में मुख्य अधिकारी है? क्या यह सच बात है? तब राजगुरु ने पूछा, " हाँ सचमुच मैं राज दरबार में मुख्य अधिकारी हूँ| तुम यह क्यों पूछ रहे हो?" तब तेनालीराम ने कहा, "यह मेरा सपना है कि मैं किसी भी तरह राज दरबार का सदस्य बनूँ |"


राजगुरु ने मन ही मन सोचा, "यह कितना बड़ा बेवकूफ है|" लेकिन फिर भी उन्होंने तेनालीराम को कहा, "क्यों नहीं, क्यों नहीं, तुम जरूर एक दिन राज दरबार में सदस्य बनोगे|" तेनालीराम ने कहा, "मैं राजदरबार में विदूषक बनूँगा और राजा का मनोरंजन करूँगा| क्या आप मेरी राज दरबार का सदस्य बनने में सहायता कर सकते हैं?" राजगुरु ने कहा, "जरूर, जरूर क्यों नहीं! जैसा कि तुम जानते हो कि मैं राज्य का एक प्रमुख व्यक्ति हूँ और राजा भी मेरी बात मानते हैं और मुझसे ही सलाह लेते हैं|"

"तो क्या मैं आपसे विजयनगर आकर मिल सकता हूँ?" तेनालीराम ने पूछा|

"हाँ, हाँ जरूर! तुम विजयनगर आकर मुझसे जरूर मिलना|" राजगुरु ने कहा| लेकिन उन्होंने यह कभी नहीं सोचा कि यह बेवकूफ ऐसा भी कर सकता है| अगले दिन राजगुरु फिर से अपने दरबार में चले गए और इस बात को पूरी तरह से भूल गए| लेकिन तेनालीराम नहीं भूला| कुछ ही दिन में तेनालीराम ने अपना बोरिया बिस्तर बाँधा और अपनी पत्नी और माँ के साथ विजयनगर की ओर प्रस्थान किया| और विजयनगर पहुंच कर उन्होंने राजगुरु के मकान को ढूंढने की कोशिश की|


 तेनालीराम ने राजगुरु के महल को देखकर सोचा, "हाँ सच मुच राजगुरु प्रमुख व्यक्ति ही है जो राजा इनको इतना अच्छा महल दे रहे हैं|अब मुझे राजदरबार में दरबारी बनने में कोई समस्या नहीं होगी| और तेनालीराम खुशी खुशी राजगुरु के महल में घुसने की कोशिश करने लगे| राजगुरु जी तेनालीराम को खिड़की से देख रहे थे, "अरे यह मूर्ख मुझे परेशान करने के लिए आ गया| अभी उसको अच्छा सबक सिखाता हूँ|"


 राजगुरु जी ने एक सेवक को बुलाकर कहा, "इसको अच्छे से मार कर उठा कर फेंक दो|" तेनाली राम कुछ समझ पाते उससे पहले उस सैनिक ने तेनाली राम को बहुत मारा और उठाकर सड़क पर फेंक दिया| तेनाली रमन ने उस सैनिक को बताया कि राजगुरु जी ने ही उन्हें बुलाया है| इसलिए वह फिर से महल में जाने की कोशिश करने लगे| इस बार तेनालीराम ने देखा कि राजगुरूजी खिड़की पर खड़े हैं और वह सैनिक को कुछ आदेश दे रहे हैं|" उस सैनिक ने तेनालीराम की एक नहीं सुनी और उसे अच्छे से और मारा|


 तेनालीराम इस अपमान का बदला लेना चाहते थे| और इसका मौका ढूँढ रहे थे| काफी दिनों बाद उन्हें एक मौका मिला|एक दिन सुबह-सुबह राजगुरु जी तुंगभद्रा नदी पर स्नान करने के लिए जा रहे थे| और उन्होंने अपने वस्त्र वही उतारकर नदी में स्नान करने के लिए प्रवेश किया| तब तेनालीराम ने चुपके से उनके वस्त्र उठा लिए और पेड़ के पीछे जाकर छुप गए|


जब राजगुरु जी नदी से स्नान करके बाहर आए तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि उनके वस्त्र कहाँ चले गए| तभी तेनाली राम पेड़ के पीछे से बाहर निकल कर आए| "राजगुरु जी आप के वस्त्र मेरे पास है|" राजगुरु जी के गुस्से का पारावार चढ़ गया| राजगुरु जी गुस्से में तेनालीराम के ऊपर चिल्लाये "अगर तुम मुझे मेरे वस्त्र नहीं दोगे तो मैं उसका अच्छा सबक सिखाऊंगा जो तुम्हें जिंदगी भर याद रहेगा|" तेनालीराम ने उत्तर दिया , "मैंने पहले ही अपना सबक सीख लिया है| अब सबक सीखने ने की बारी आपकी है|" 

तेनालीराम और हवा में तैरने वाली मूर्ति


तेनालीराम की तरकीब


 जब राजगुरु जी को लगा कि अब कोई भी तरीका काम नहीं आने वाला है तब उन्होंने बड़े आराम से तेनालीराम से पूछा," तुम अच्छे लड़के हो तो अच्छी तरीके से मेरे कपड़े वापस कर दो|" तेनालीराम ने पूछा,"इसके बदले मुझे क्या मिलेगा|" राजगुरु जी ने जवाब दिया "जो भी तुम चाहो"| तब तेनालीराम ने कहा,"अच्छा मेरी एक शर्त है आप मुझे अपनी पीठ पर बिठाकर राजमहल के सामने से निकलेंगे| राजगुरु जी ने सोचा कि अभी तो मैं हाँ करके अपने वस्त्र वापस ले लेता हूँ और उसके बाद देखते हैं कि इसको कैसे सबक सिखाया जाए| राजगुरु जी तेनाली राम से कपड़े लेकर उन्हें पहन कर जल्दी-जल्दी जाने लगे और तेनाली राम भी उनका पीछा करने लग गए| जैसे ही राजगुरूजी महल के सामने से गुजरे तो तेनाली राम ने उनको पकड़ लिया और राजगुरु को छुड़ाना मुश्किल हो गया| तेनाली राम राजगुरु की पीठ पर चढ़कर चिपक गए| राजा यह सब अपनी खिड़की से देख रहे थे|


 राजा यह सब महल की खिड़की से देख रहे थे और उन्होंने अपने सैनिकों को बुलाकर आदेश दिया कि जो भी नाचीज़ मेरे राजगुरु की पीठ पर चढ़कर उन्हें परेशान कर रहा है, उसे जल्दी से अच्छा सबक सिखाओ और राजगुरु जी को मेरे आगे लेकर आओ| तेनालीराम ने देखा कि राजा सैनिकों से कुछ बोल रहे हैं| "जरूर कुछ गड़बड़ होने वाली है" तो वह जल्दी से राजगुरु जी की पीठ से उतरकर उनके पैर में गिर गए," गुरु जी, गुरु जी मैंने आपको बहुत परेशान किया है| मेरी बुद्धि खराब हो गई थी| इसका मुझे प्रायश्चित करना है| इसके लिए आप मेरी पीठ पर चढ़ जाइए| मैं आपको घर तक अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाऊँगा| और मुझे माफ कर दीजिए| और जबरदस्ती तेनालीराम ने राजगुरु जी को अपनी पीठ पर बिठा दिया|


 सैनिक महल से दौड़े-दौड़े आए लेकिन वह दो दिन पहले ही महल पर निगरानी के लिए नियुक्त किए गए थे| इसलिए उन्होंने राजगुरु जी को पहचाना नहीं| और जैसे ही राजा ने आदेश दिया था कि जो भी राज गुरुजी की पीठ पर चढ़ा हुआ है उसे लेकर आना है| तो उन्होंने जो व्यक्ति पीठ पर चढ़ा हुआ था उस को उन्होंने अच्छे से मारा और फिर तेनाली राम को राजा के सामने पेश किया| तब राजा कृष्णदेव राय ने आश्चर्य से पूछा, "तुम कौन हों? मैंने सोचा कि तुम्हें तो सैनिकों ने अच्छा मारा होगा और मेरे गुरु जी कहाँ है?" तब सैनिकों ने कहा "यही राजगुरूजी है, जैसा आप ने आदेश दिया था कि आपके राजगुरू जी की पीठ पर कोई व्यक्ति सवार है| जो व्यक्ति पीठ पर सवार था हमने उसे इस तरीके से पीटा कि वह जिंदगी भर भूल नहीं सकता|" तब राजा ने आश्चर्य से पूछा, "तुम तो मेरे गुरु नहीं हो| यहाँ क्या चल रहा है और मेरे गुरु कहाँ है?"


 तब तेनालीराम राजा के पैरों पर गिर गए और विनम्रता पूर्वक कहा, " मुझे माफ कर दीजिए राजन! और मुझे अपनी बात कहने का अवसर दीजिए ताकि इस रहस्य से पर्दा उठ जाए|और तेनालीराम ने उनके साथ जो-जो भी घटा था वह सब राजा कृष्णदेव राय को बता दिया| तेनालीराम ने राजा से यह भी कहा, "मैंने गलती की है| और आप जो भी सजा दे, मैं वह सजा भी भुगतने के लिए तैयार हूँ |


राजा ने सोचा कि तेनालीराम ने गलत किया है| लेकिन फिर भी वह चतुर और हाजिर जवाब है और बिना डरे अपनी बात कह रहा है| हमें इस तरह के कि व्यक्ति ही मेरे दरबार में चाहिए| राजा कृष्णदेव राय ने कहा, "ठीक है तेनाली राम! जो भी तुमने किया मैं पूरी तरह से सहमत हूँ |" मुझे तुम्हारे जैसे ही व्यक्ति अपने दरबार में चाहिए| इसलिए मैं आज से तुम्हें अपने दरबारी के रूप में नियुक्त करता हूँ |लेकिन अगर भविष्य में तुमने ऐसी कोई गलती की तो तुम्हें इसकी सजा जरूर भुगतनी पड़ेगी| और राजा कृष्णदेव राय ने एक सोने का थैला तेनाली राम को देते हुए कहा, "जाओ इसे ले जाओ और तुम अपने घर की व्यवस्था कर कल से दरबार में उपस्थित हो जाओ|"

 तेनालीराम मैंने धन लिया और खुशी-खुशी अपने घर आकर अपनी पत्नी और माताजी को सारा विवरण सुनाया| तेनाली राम की माताजी को विश्वास नहीं हुआ कि उनका आलसी और निकम्मा तेनाली उनकी गरीबी के दिन दूर करने वाला है| और अब से तेनाली राम राजा कृष्णदेवराय के दरबार के प्रमुख व्यक्तियों में शामिल हो गए|

इस तरह हम इस कहानी में देखा कि तेनाली राम कैसे गरीब हो कर भी बड़े महत्वकांक्षी थे| और किस तरह से उन्होंने राजा कृष्णदेवराय के राज दरबार में अपनी जगह बनाई|


 तो आपको यह कहानी पढ़कर कैसा लगा और अगर यह कहानी आपको अच्छी लगी तो अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कीजिए।










तेनाली राम || Tenali Ram : Stories of Tenali Raman तेनाली राम || Tenali Ram : Stories of Tenali Raman Reviewed by Kahani Sangrah on October 02, 2024 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.