तेनालीराम और हवा में तैरने वाली मूर्ति
तेनालीराम और हवा में तैरने वाली मूर्ति |
इस कहानी में हम पढ़ेंगे कि राजा कृष्णदेव राय ने एक असंभव मूर्ति बनाने का आदेश दिया। तेनालीराम ने कैसे अपनी सूझ बूझ से दरबारियों की मदद की।
तेनालीराम और हवा में तैरने वाली मूर्ति
एक समय की बात है। राजा कृष्णदेव राय को एक सपना आया। राजा कृष्णदेव राय ने सपने में देखा कि उनकी 50 फीट की सोने की मूर्ति बनी हुई है।और सोने की मूर्ति में बेशकीमती रत्न जड़े हुए थे। और वह मूर्ति हवा में तैर रही थी।
राजा कृष्णदेव राय ने सुबह उठकर अपने दरबारियों को बुलाया। राजा ने अपने दरबारी से अपने सपने के बारे में बात की। राजा ने बताया कि उनकी 50 फीट ऊंची सोने की मूर्ति थी और उस मूर्ति में बेशकीमती रत्न जड़े हुए थे।
दरबारी ने कहा कि हमारे यहां बहुत ही उम्दा कारीगर मौजूद है। उनसे कहकर हम आपका सपना पूरा करवा सकते हैं। राजा बहुत उत्सुक होकर कहने लगा। हां जरूर यह सपना पूरा होना चाहिए। लेकिन मैं एक बात बताना भूल गया कि वह मूर्ति हवा में तैर रही थी। मुझे बिल्कुल अपने सपने जैसे ही मूर्ति चाहिए। सभी दरबारी स्तंभ रह गए।
दरबारियों ने सारे कारीगरों को राजा के सपने के बारे में बताया और वैसे ही मूर्ति बनाने के लिए आग्रह किया। सभी शिल्पकार हवा में तैरने वाली मूर्ति की बात सुनकर आनाकानी करने लगे। क्योंकि हवा में तैरने वाली मूर्ति बनाना असंभव था।
कुछ दिनों बाद राजा ने फिर से दरबारी से उनके सपने के बारे में पूछा। सभी दरबारी तेनालीराम के पास पहुंचे। तेनालीराम से इस मुश्किल हालात से बचाने का उपाय पूछने लगे।
तेनालीराम ने एक हफ्ते का समय मांगा। एक दिन तेनालीराम एक बुजुर्ग का वेश धारण कर राजमहल में आए। वह राजा को भला बुरा कहते हुए दरबार में आ रहे थे।
दरबार में राजा के सामने आने के बाद तेनालीराम ने कहा कि आपने मेरा सब कुछ लूट लिया। मुझे कहीं का नहीं छोड़ा ।एक फूटी कोड़ी भी मेरे पास नहीं है ।आपने सब कुछ मुझसे छीन लिया।
राजा ने पूछा यह कैसे संभव है। तब उस बुजुर्ग आदमी ने कहा कि मैंने सपने में देखा कि आपने अपने दरबारियों को आदेश दिया था कि मेरा सब कुछ ले ले और मुझे भिखारी बना दे। राजा कृष्णदेव राय ने कहा कि सपने में घटी हुई सभी चीज जरूरी नहीं की, जिंदगी में भी वैसे ही घटित हो।
तभी तपाक से उस बुजुर्ग आदमी ने कहा कि ठीक उसी तरह आपकी भी हवा में तैरने वाली मूर्ति बनाना असंभव है। राजा निरुत्तर हो गया। राजा को अपनी गलती समझ में आई। सभी दरबारी ने बीरबल को धन्यवाद दिया।
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तेनालीराम और हवा में तैरने वाली मूर्ति
Reviewed by Kahani Sangrah
on
October 02, 2024
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