तेनालीराम की तरकीब
इस कहानी में हम पढ़ेंगे कि कैसे तेनालीराम की तरकीब ने राजा कृष्णदेवराय को अपनी गलती का एहसास कराया।
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तेनालीराम की तरकीब
एक समय की बात है, जब राजा कृष्णदेव राय अपना सारा समय विलासिता में बिताते थे। और दरबारी भी उनकी चापलूसी में अपना समय बिताते थे। और राजा राजकाज की तरफ कम ध्यान देते थे। धीरे-धीरे उनका सारा राजकोष खाली होने की कगार पर आ गया था।
तेनालीराम राजा कृष्णदेव राय की इस विलासिता को देखकर बहुत चिंतित होने लगे। और राज्य की हालत देखकर उनकी चिंता और बढ़ गई। तेनालीराम चाहते थे कि राजा फिर से राजकाज संभालने लग जाए और पुनः उनका राज्य खुशहाल हो जाए । तेनालीराम ने राजा कृष्णदेव राय को अपने राज्य की हालत के बारे में बताने का निश्चय किया।
तेनालीराम ने एक तरकीब सोची। उन्होंने राज्य के रसोईए से बिना मसाले का खाना बनाने के लिए कहा। जब खाना राजा के सामने परोसा गया, तो राजा को बिना मसाले के खाना बेस्वाद लगा। राजा ने गुस्से में रसोईए को बुलाया और उसे बिना मसाले के खाने के बारे में पूछा।
तब रसोईए ने बोला कि मुझे इस तरह का खाना बनाने के लिए तेनालीराम ने ही कहा था। राजा ने तुरंत तेनालीराम को बुलावा भेजा। तेनालीराम समझ गए कि राजा ने क्यों बुलाया है।
तेनालीराम डरते डरते राजा के सामने गए और हाथ जोड़कर कहने लगे "महाराज क्षमा करें, मैं ने ही रसोईए से बिना मसाले का खाना बनाने के लिए कहा था। क्योंकि महाराज अब राज्य में मसाले की खेती नहीं हो रही है। क्योंकि मसाले की खेती करने में खर्च ज्यादा आता है और उसका मुनाफा भी किसानों को बिल्कुल नहीं मिलता है। और इस वजह से मसाले बहुत महंगे हैं । इतने महंगे मसाले या तो सिर्फ राजमहल में जाते हैं या सिर्फ दरबारी के घर ही जाते हैं। आम जनता को मसाले तो क्या सादा खाना भी नसीब नहीं होता है।"
राजा को इस स्थिति का पता नहीं था। जब तेनालीराम ने राजा कृष्णदेव राय से यह सब कहा तो राजा निरुत्तर रह गए। और राजा ने विलासिता पूर्ण जीवन त्याग कर राजकाज संभालने का निर्णय लिया।
अब राजा राज्य की सारी देखभाल और राजकोष स्वयं संभालते थे। अब राजकोष से भी कोई चोरी नहीं कर पाता था। इस तरह उनका राजकोष भी दिनों दिन बढ़ता जा रहा था। कुछ ही दिनों में उनका राज्य फिर से खुशहाल राज्य के रूप में जाने जाना लगा।
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तेनालीराम की तरकीब
Reviewed by Kahani Sangrah
on
October 02, 2024
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